न कोई साथी न आशियाँ
अपनी थी जो ये ज़मीं वो भी लगे आज अन्जान
दोस्त तो कभी साथ थे ही नहीं
हम अपने ही घर में आज हुए मेहमान
हँसती होगी कभी याद नहीं
आज तो बस ज़िन्दगी ब्लैंक ब्लैंक सी लगती है
धीरे धीरे साँसे थम रहीं हैं
काले अँधेरे बढ़ते हुए से
और रोशनियाँ घट रही हैं
आज अँधेरों से डर नहीं लगता
साया तक तो साथ नहीं
ज़िंदा होगी कभी ये मालूम नहीं
आज तो ये ब्लैंक ब्लैंक सी लगती है
ज़िन्दगी ब्लैंक ब्लैंक सी लगती है
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