वो बचपन के ज़माने
जब बड़े सयाने
डांटा करते
हम रोया करते
गुस्से में फूल
फिर सब भूल
लुका छुपी खेलते
माँ की गोद में छुपते
स्कूल में टीचर
अजीब क्रियेचर
मस्ती और पढ़ाई
मज़ाक में लड़ाई
फिर मैदान में
क्रिकेट या पकड़म पकड़ाई
शाम झट बीत जाती
घर आके, टीवी चलाते
पापा ऑफिस से आते
टीवी बंद हम भाग जाते
होमेवर्क को खोल
करते झोल
थोडा पढ़ते
ड्राइंग करते
लेते शावर
फिर डिज़्नी आवर
रात को दूध देख
अजीब चेहरे बनाते
कहानी बिना सोते नहीं
पापा डांट लगाते
माँ सुलाती
हम सो जाते..
फिर सपने में
बड़े होने के ख्वाब देखते
इस बात से अनजान
कि बड़े होकर हम
इसी बचपन को तरसेंगे...
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7 comments:
Awsum adi awsum..:)
nice one....
nice one adi :)
ekdum seedhi sacchi poem hai :)... nice :)
:)...too cute
outstanding :) i loved it
thnx..
wow adi tu to kavi ho gaya hai yaar.
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