काश तुम यहाँ होते
तो मेरी आँखें शायद सुन पाते, समझ पाते
लफ़्ज़ों का मोहताज़ जो हो गया हूँ
वो मैं न होता तब
मेरी आवाज़ से बेखबर जो हो गए हो
वो तुम न होते तब
खामोश बैठ बातें कर पाते हम
खामोश.. सी बेचैनियाँ मेरी शायद सुन पाते तुम
थकती साँसों को सांस आ जाती
पथराई आँखों को नींद
मुझे मैं मिल जाता
तुम्हे तुम
काश तुम यहाँ होते
काश.. मैं यहाँ होता
2 comments:
Lovely.
Thanks :)
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