College के उस लम्बे Lecture में
आख़िरी सीट पर किसी किताब से लगे
या शायद गर्मियों की दोपहरों में
खट्टे आम की मीठी छाँव तले
या शायद ड्राइंग रूम के सोफे पर
माँ से नाराज़ रोते बिलखते औंधे पड़े
या शायद सर्दी की सुबहों के
उन और पांच मिनटों से सटे
या शायद गुदगुदाती किसी रात में
बाबा की कहानियों तले...
कुछ नींदे रखी हैं
6 comments:
very nice poem!
Sweet! I felt like a baby while reading this. it took me back to my good old carelessly sleeping ways. :)
एक लम्बी सी मुस्कान चेहरे पर खिल गई ....
Thank you everyone. :)
bahut hi umda khas kar aakhiri line --
कुछ नींदे रखी हैं
ज़रा पकड़ा दोगे ?
Reminded me of my childhood innocence..
Post a Comment